महाविद्या की उपासना में देवी छिन्नमस्ता तंत्र शास्त्र की एक अत्यंत रहस्यमयी शक्तिशाली महाविद्या हैं। वे दस महाविद्याओं में से छठी हैं और आत्म-बलिदान, कुंडलिनी जागरण होता है और इसे जागरण करने के लिए माता की उपासना की जाती है यह तांत्रिक उन्नति की प्रतीक हैं। उनका स्वरूप, उपासना और कथा साधकों को आत्मानुभूति की चरम स्थिति तक ले जाती है।
देवी की उपासना मंत्र से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं एवं जो व्यक्ति उनकी सरल मात्रा में जाता है उसकी कुंडली जागरण के साथ-साथ जो भी उसके पूर्व जन्म के तत्व होती है । वह भी जागृत हो जाती है
देवी छिन्नमस्ता का रूप
देवी अपने ही कटी हुई गर्दन को हाथ में पकड़े होती हैं। जो मुक्ति का प्रतीक है
तीन रक्त की धाराएं उनकी गर्दन से निकलती हैं: एक स्वयं देवी के मुख में जाती है, दो अन्य उनकी डाकिनी और वारुणी नामक सखियों के मुख में।
जिनको जया विजया के नाम से जाना जाता है ।
देवी दिगम्बर है शव से खड़ी रहती हैं, शव (कामदेव और रति) पर पांव रखे हुए। जो काम विजय का प्रतीक है । देवी की उपासना करने से काम पर विजय प्राप्त होती है।
देवी तामसिक प्रतीत होती हैं, महाशक्ति ब्रह्मज्ञान की ओर ले जाने वाली होती है
🕉️ मूल मंत्र (बीज मंत्र)
ॐ छिन्नमस्तिकायै नमः॥
ध्यान मंत्र
खड्गं खप्तं च कर्पालं त्रिनयनवदनां रक्तवर्णां त्रिनेत्राम्।
वामे डाकिन्यदायं वहति पयुधरं दक्षिणे वारुणीं च॥
रक्तधारा त्रयं च स्रवति मुखतटात्तस्य या स्वानमुख्या।
सा देवी छिन्नमस्ता भवतु मम सदा मङ्गलार्धं करोतु॥
उपासना विधि:
सर्वश्रेष्ठ काल:
गुप्त नवरात्रि, अमावस्या, या रात्रि का तीसरा प्रहर
उपासना तांत्रिक विधि से होनी चाहिए, गुरु मार्गदर्शन आवश्यक है।
देवी की साधना हमेशा गुरु के मार्गदर्शन पर ही करनी चाहिए क्योंकि देवी की साधना अत्यंत उग्र है और बिना गुरु के मार्गदर्शन के यदि आप करते हैं तो दंड के पत्र में बन सकते हैं यह साधना में त्रुटि होने से आपको कष्ट प्राप्त हो सकता है ।
यदि चेतावनियों के बाद भी आप साधना निरंतर जारी रखते हैं तो आप मानसिक रूप से बीमार पड़ सकते हैं या पागल हो सकते हैं
सामग्री:
लाल वस्त्र, रक्तचंदन, अनार, गुड़, लाल पुष्प, श्मशान की मिट्टी (विशेष तांत्रिक साधना में)
दीपक, धूप, रक्तवर्णी माला (या रुद्राक्ष माला)
साधना क्रम:
- स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें।
- एकांत या श्मशान जैसे स्थान पर आसन ग्रहण करें।
- देवी का ध्यान करें, उनका स्वरूप मन में सजीव करें।
- मंत्र जप करें – प्रारंभ में 108 बार यह 10008 “ॐ छिन्नमस्तिकायै नमः”।
- दीप जलाएं, भोग अर्पण करें – खीर, रक्तवर्ण फल जैसे अनार या अनार का रस।
🪔 देवी के वरदान:
कुंडलिनी शक्ति का जागरण
तामसिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण
भय, मृत्यु, और मानसिक बंधनों से मुक्ति
साधना में तीव्र प्रगति
तांत्रिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है