संघर्ष से संकल्प तक: भारत-इज़राइल रिश्तों की गहराई

Mahendra Vikram
11 Min Read

भारत और इजराइल – दो लोकतंत्र, दो सभ्यताएँ, जो हजारों वर्षों से जीवित हैं—एक दक्षिण एशिया में, दूसरा मध्य पूर्व में। भौगोलिक रूप से अलग, लेकिन एक गहरे विश्वास से जुड़े हुए। सवाल यह है कि बदलते गठबंधनों और नाजुक कूटनीति की दुनिया में भारत, इज़राइल पर इतना भरोसा क्यों करता है? आइए, इसे समझते हैं।

1999 का कारगिल युद्ध


1999 में, भारत अपने सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक युद्धों में से एक में था। टारगेट बहुत ऊँचे थे, भारतीय सैनिक दुश्मन की गोलीबारी के बीच हिमालय की दुर्गम चोटियों पर चढ़ रहे थे। आतंक का ये चेहरा दुनिया देख रही थी, लेकिन ज़्यादातर देश इस पर चुप रहे। भारत के कुछ तथाकथित मित्र देशों ने भी आश्चर्यजनक रूप से संकोच दिखाया। उन्होंने राजनीतिक परिणामों की गणना की, लेकिन इज़राइल ने इंतज़ार नहीं किया। जब भारत को सटीक बम, निगरानी उपकरण और युद्धक्षेत्र की खुफिया जानकारी की ज़रूरत थी, इज़राइल उन चुनिंदा देशों में से था, जिसने सक्रियता, गोपनीयता और ईमानदारी के साथ जवाब दिया। यह कोई कूटनीतिक दिखावे के लिए नहीं था बल्कि इज़राइल ने वह किया जो सच्चा मित्र संकट में करता है—वह साथ खड़ा हुआ।

इसराइल ने भारत को लेजर-गाईडेड बम दिए, जिसने भारत की हवाई श्रेष्ठता को बढ़ाया। उन्होंने यूएवी (मानवरहित ड्रोन) प्रदान किए, जिसने भारतीय सेना को आकाश में निगरानी की शक्ति दी। उन्होंने सैटेलाइट डेटा, रियल-टाइम इमेजनरी और ऐसी खुफिया जानकारी दी जो ज़मीन पर जिंदगियाँ बचाती है। यह सिर्फ़ सैन्य समर्थन नहीं था, यह एक संदेश था—हम आपके आत्मरक्षा के अधिकार में विश्वास करते हैं। इज़राइल ने अंतरराष्ट्रीय सहमति की प्रतीक्षा नहीं की। उन्होंने एक लोकतांत्रिक राष्ट्र को उसकी संप्रभुता पर चुनौती का सामना करते देखा और सक्रियता और गोपनीयता से, प्रभावी ढंग से कार्रवाई में मदद दी।

इसराइल के इस कदम ने भारत के भरोसे की धारणा को बदल दिया, क्योंकि जब गोलियाँ चल रही हों और जिंदगियाँ दांव पर हों, तब शब्द मायने नहीं रखते, भाषण मायने नहीं रखते—कार्रवाई मायने रखती है। इज़राइल के उस फैसले ने एक ऐसी नींव रखी जो आज दुनिया की सबसे गोपनीय लेकिन शक्तिशाली रणनीतिक साझेदारियों में से एक को समर्थन देती है। भारत ने इसे कभी नहीं भुलाया, और न ही इज़राइल ने , क्योंकि सच्चे गठबंधन हाथ मिलाने से नहीं, बल्कि संकट में तपकर बनते हैं।

खुफिया सहयोग


आपको यह बात सार्वजनिक रूप से कम ही सुनने को मिलेगी, लेकिन पर्दे के पीछे दोनों देशों की खुफिया एजेंसिया, भारत की रॉ (RAW) और इज़राइल की मोसाद (Mossad) के बीच दुनिया की सबसे गहरी और प्रभावी खुफिया साझेदारी है। यह कोई सुर्खियाँ बटोरने वाला समझौता नहीं है बल्कि यह वास्तविक और ऑपरेशनल स्तर का सहयोग है। डेटा शेयरिंग, गुप्त विश्लेषण, और ज़मीन पर खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान—यह सब दुनिया को पता चले बिना होता है।

भारत और इज़राइल दोनों सबसे शत्रुयुक्त पड़ोस में रहते हैं। पाकिस्तान, ईरान, सीरिया, चीन, तुर्किए के आतंकी नेटवर्क, साइबर हमलावर के ख़तरों से पूरी दुनिया परिचित है। दो देश, जिनका मिशन राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखते हुए लोकतंत्र को कायम रखना है, खुफिया स्तर पर एकजुट होते हैं, तो कुछ दुर्लभ शक्ति बनते हैं।

2008 के मुंबई में हुए आतंकी हमलों के बाद, पर्दे के पीछे से इज़राइल ने भारत को शहरी युद्ध की तैयारियों को फिर से परिभाषित करने में मदद की। आतंकरोधी ट्रेनिंग मॉड्यूल से लेकर आतंकवाद-रोधी प्रोटोकॉल तक, मोसाद ने दशकों के संघर्ष से निकले तरीके साझा किए। जिससे तीव्रता से जवाब देना, नागरिक नुकसान को सीमित करना, और वास्तविक समय में खतरों को बेअसर करना, संभव हो सका।

खुफिया तंत्र की इस प्रकृति को आप तभी नोटिस करते हैं जब यह विफल होता है। लेकिन रॉ और मोसाद के सहयोग के कारण, भारत की धरती पर कई नियोजित आतंकी हमले चुपके से नाकाम कर दिए गए, इससे पहले कि वे खबरों में आते।

रक्षा सहयोग

भारत और इज़राइल का रक्षा संबंध आधुनिक दुनिया के सबसे प्रोडक्टिव और बेहतरीन रिश्तों में से एक है। पिछले दो दशकों में, इज़राइल ने भारत को अगली पीढ़ी की सैन्य तकनीकें प्रदान की हैं—अत्याधुनिक रडार सिस्टम, सटीक मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण, सीमा निगरानी सिस्टम, और युद्ध-परीक्षित ड्रोन, वो भी बिना किसी शर्तो के। इसराइल गोपनीयता के साथ, विश्वसनीय रूप से और सम्मान के साथ सहयोग करता है।

भारत एक गर्वीला लोकतंत्र है। वह मैनेजमेंट या तिरस्कार को बर्दाश्त नहीं करता। इज़राइल इसे सहज रूप से समझता है। इज़राइल भारत की संप्रभुता का सम्मान करता है, कुछ दूसरे देशों की तरह नहीं जो रक्षा व्यापार का इस्तेमाल विदेश नीति को नियंत्रित करने के लिए करते हैं, जब भारत को कुछ चाहिए, इज़राइल तेज़ी से इसे पूरा करने का प्रयास करता है—चाहे युद्धकालीन आपातकाल हो या शांतिकालीन उन्नयन।

रक्षा सहयोग में तीव्रता और भरोसा सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। भारतीय वायुसेना या सेना के अधिकारी भी यही कहते हैं कि इज़राइली तकनीक अच्छा काम करती है। यह विश्वसनीय और युद्ध क्षेत्रों में धरातल के लिए अनुकूलित है, न कि सिर्फ़ दिखावे के लिए।

उदाहरण के लिए, भारत का बढ़ता हुआ इज़राइली हेरोन ड्रोन बेड़ा। ये ड्रोन सिर्फ़ निगरानी के लिए नहीं हैं, बल्कि उच्च ऊँचाई वाली टोह, सीमा गश्त, और स्ट्राइक के लिए भी हैं। फिर बराक मिसाइल सिस्टम है, जो भारत की नौसेना रक्षा का आधार है। स्पाइस 2000 जैसे बम हैं जो हवा से जमींन पर पिन-पॉइंट एक्यूरेसी देते हैं। इज़राइल सिर्फ़ रक्षा उपकरण नहीं बेचता, वह डीआरडीओ के साथ सह-विकास करता है, नई टेक्नोलॉजी भी साझा करता है, और भारत की भौगोलिक परिस्थितियों, खतरों और रणनीतियों के लिए सिस्टम को अनुकूलित करता है।

सांस्कृतिक संबंध


भारत और इज़राइल का रिश्ता औपचारिकता का नहीं लगता, इसमें एक स्वाभाविकता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहाँ यहूदियों को कभी उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा। 2,000 वर्षों से भारत में यहूदी समुदाय बिना किसी संगठित विरोध के फले-फूले। केरल, महाराष्ट्र, कोलकाता में यहूदी समुदाय हिंदुओं के साथ शांति से रहे। सहिष्णुता, बहुसंख्यकवाद और सम्मान की इस विरासत का मतलब है कि इज़राइल भारत को सिर्फ़ रणनीतिक सुविधा के रूप में नहीं बल्कि एक स्वाभाविक मित्र के रूप में।

भारत में इज़राइली पर्यटकों के पसंदीदा स्थानों जैसे ऋषिकेश, कसोल या गोवा में घूमें, आपको हिब्रू में साइनबोर्ड, इज़राइली कैफे, और स्थानीय लोग मिलेंगे जो सालों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान से धाराप्रवाह हिब्रू बोलते हैं। भारतीय योग शिक्षक इज़राइली सैनिकों को मानसिक आघात से निपटने के लिए सत्र आयोजित करते हैं। दर्शन, इतिहास और अध्यात्म में संयुक्त शैक्षणिक शोध हो रहे हैं। भारतीय और इज़राइली संगीतकार कैफे में एक साथ सितार और सिंथ को मिलाकर कार्यक्रम करते हैं।

साझा चुनौतियाँ और मूल्य


भारत और इज़राइल न केवल साझा दुश्मनों का सामना करते हैं, बल्कि उनसे निपटने के लिए साझा मूल्यों को भी अपनाते हैं। आतंकवाद, साइबर युद्ध, कट्टरपंथी उग्रवाद—दोनों देशों को निशाना बनाया गया है। दोनों ने अपने देश पर हमले देखे हैं। दोनों ने खुले समाज और सुरक्षा-केंद्रित लचीलापन के बीच संतुलन बनाया है।

इज़राइल अपने जन्म से ही अस्तित्वगत खतरों का सामना करता रहा है। भारत ने दशकों तक प्रॉक्सी युद्ध, सीमा घुसपैठ और आंतरिक विद्रोह का सामना किया है। लेकिन जो इन दोनों को खास बनाता है, वह यह है कि वे पीड़ित मानसिकता के साथ नहीं, बल्कि नवाचार और दृढ़ता के साथ जवाब देते हैं। वे निर्माण करते हैं, रक्षा करते हैं, और विकसित होते हैं—लोकतंत्र, विविधता और राष्ट्रीय संप्रभुता के मूल्यों को बनाए रखते हुए।

भविष्य की संभावनाएँ


भारत की जनसांख्यिकीय गति और डिजिटल प्रभुत्व, इज़राइल की गहरी तकनीकी नवाचार और चपलता के साथ मिलकर एक दूसरे को भविष्य का प्रभुत्व बनाएंगे। अंतरिक्ष की बात करें—इज़राइल अपनी कम लागत, उच्च दक्षता वाली मिशनों के लिए प्रसिद्ध है। भारत ने चंद्रयान से लेकर मंगलयान तक, सौ मिलियन डॉलर में वह हासिल किया जो दूसरे एक बिलियन में करते हैं। दोनों देश मिलकर स्केलेबल, स्मार्ट अंतरिक्ष मिशन बना सकते हैं, जो न केवल रक्षा के लिए, बल्कि जलवायु निगरानी, कृषि अनुकूलन और आपदा प्रतिक्रिया के लिए भी होंगे।

AI में, इज़राइल मशीन लर्निंग और स्वायत्त रक्षा प्रणालियों में सीमाओं को आगे बढ़ा रहा है। भारत के पास सबसे बड़ा खुला इंटरनेट और तेज़ी से बढ़ता AI इंजीनियर पूल है। इनके मिलन से स्मार्ट शहर, भविष्यवाणी स्वास्थ्य, और वित्तीय समावेशन जैसे क्षेत्रों में वैश्विक बदलाव आएंगे।

निष्कर्ष


भारत और इजराइल रिश्ता सिर्फ़ रणनीतिक या ऐतिहासिक नहीं है। दो राष्ट्र, जो समय और संघर्ष की कसौटी पर खरे उतरे हैं, और जिन्होंने उभरने का फैसला किया। भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और इज़राइल, सबसे लचीले लोकतंत्रों में से एक, दोनों गहरे आध्यात्मिक और दोनों यह समझते हैं कि संप्रभुता के लिए लड़ते हुए भविष्य का निर्माण क्या होता है।

जब भारत और इज़राइल साथ चलते हैं, तो वो किसी के पीछे नहीं चलते। वे विश्वास, प्रतिभा, तकनीक और ऐतिहासिक मूल्यों पर आधारित एक नया रास्ता बना रहे हैं। यह न सिर्फ़ स्मार्ट जियो-पॉलिटिक्स है बल्कि वैश्विक नेतृत्व का भविष्य है।

Share This Article
1 Comment